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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र द्वारा एक याचिका को मंजूर कर ली, जिसमें सशस्त्र बलों के व्यभिचार के लिए मुकदमा चलाने की छूट देने की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2018 में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 497 के तहत इसको असंवैधानिक घोषित किया था। रक्षा मंत्रालय (MoD) द्वारा इस आशय का स्पष्टीकरण मांगने के लिए दायर एक आवेदन पर बुधवार को न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई की।
रक्षा मंत्रालय की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कोर्ट को बताया कि जोसेफ शाइन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में कोर्ट के 27 सितंबर 2018 के फैसले में व्यभिचार को अपराध नहीं माना है। आपको बता दें कि सशस्त्र बल के जवानों को सेना अधिनियम, नौसेना अधिनियम और वायु सेना अधिनियम के तहत इस काम के लिए दोषी ठहराया जा सकता है।
वेणुगोपाल ने कहा, “सेना, नौसेना और वायु सेना के पास ऐसे प्रावधान हैं जिनके द्वारा व्यभिचारी कृत्यों में पकड़े जाने वालों को उनके आचरण के लिए दंडित किया जा सकता है। इसमें उनका कोर्ट मार्शल भी किया जा सकता है।”
केंद्र द्वारा आवेदन में कहा गया है, “इस न्यायालय द्वारा सुनाए गए पहले निर्णय आवेदक सेवाओं के भीतर अस्थिरता पैदा कर सकता है, क्योंकि रक्षा कार्मिकों को अजीबोगरीब परिस्थितियों में कार्य करने की अपेक्षा की जाती है। इस दौरान कई बार उन्हें अपने परिवारों के लिए अलग रहना पड़ता है। जब वे सीमाओं या अन्य दूर-दराज के क्षेत्रों में या अमानवीय मौसम और इलाके वाले क्षेत्रों में तैनात होते हैं तो उन्हें लंबी अवधि के लिए परिवार से दूर रहना पड़ता है।”
वेणुगोपाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर स्पष्ट किए जाने की जरूरत है, एक तर्क यह भी उठाया जा सकता है कि हम कानून को दरकिनार कर रहे हैं और जो कि पूर्वोक्त फैसले के मद्देनजर सीधे नहीं किया जा सकता है।
नोटिस जारी करते हुए सर्वोच्च अदालत ने इस मामले को चीफ जस्टिस एसए बोबड़े के पास भेजा है, जिसमें इस मामले को पांच जजों की संविधान पीठ में सुनने की अपील की गई है। पीठ ने न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और केएम जोसेफ को भी शामिल करते हुए कहा, “हम स्पष्ट नहीं कर सकते क्योंकि यह संविधान पीठ का फैसला है।’
आवेदन में कहा गया है कि आईपीसी की धारा 497 के विपरीत, सशस्त्र बल पुरुष या महिला के बीच कोई अंतर नहीं करते हैं।
2018 के फैसले से पहले धारा 497 के तहत व्यभिचार अपराध था। जिसके अंतर्गत उन पुरुषों को 5 साल की सजा का प्रावधान था, जो किसी विवाहित महिला के साथ उसकी सहमति से या बगैर सहमति के संबंध बनाता है। 2018 के फैसले में हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने माना कि व्यभिचार एक अपराध नहीं हो सकता है, लेकिन यह तलाक मांगने के लिए एक आधार बना रहेगा।
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