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लेबर मिनिस्ट्री ने पेंशन फंड और ईपीएफ में अंशदान घटाने का सुझाव दिया है। मिनिस्ट्री ने कर्मचारी और नियोक्ता की ओर से मूल वेतन यानी बेसिक के 10% अंशदान का सुझाव ईपीएफ फंड के लिए दिया है। फिलहाल कर्मचारी और नियोक्ता, दोनों को ही 12-12% योगदान देना पड़ता है। इससे लोगों की टेम होम सैलरी बढ़ेगी पर पेंशन घट जाएगी।
सूत्रों ने कहा कि पैनल को बताया गया है कि ईपीएफओ के पास 23 लाख से अधिक पेंशनभोगी प्रति माह 1,000 रुपये विदड्रा करते हैं, जबकि फंड कॉर्पस में उनका योगदान उनके द्वारा किए जा रहे लाभों के एक चौथाई से भी कम है। उन्होंने यह भी कहा कि यह सरकार के लिए लंबे समय तक समर्थन करने के लिए अनुचित होगा, जब तक कि “परिभाषित योगदान” की व्यवस्था नहीं की जाती।
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पिछले साल समिति ने ईपीएफओ के केंद्रीय न्यासी बोर्ड की ईपीएफओ पेंशन योजना के तहत न्यूनतम मासिक पेंशन 2,000 रुपये या 3,000 रुपये करने के लिए अगस्त 2019 की सिफारिश को लागू करने में विफलता पर श्रम मंत्रालय से सवाल किया था। सूत्रों ने बताया कि मंत्रालय ने कहा था कि न्यूनतम मासिक पेंशन बढ़ाकर 2,000 रुपये प्रति सब्सक्राइबर करने से तकरीबन 4,500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ेगा और यदि इसे बढ़ाकर 3,000 रुपये प्रति माह कर दिया गया तो यह बोझ 14,595 करोड़ रुपये का हो जाएगा।
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टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक गुरुवार की बैठक में अधिकारियों ने पैनल के सामने माना कि शेयर बाजारों में निवेश किए गए ईपीएफओ फंडों का एक हिस्सा खराब निवेश में बदल गया और कोरोनोवायरस-प्रेरित उथल-पुथल के बाद नकारात्मक परिणाम मिला। सूत्रों ने कहा कि अधिकारियों ने समिति को बताया कि ईपीएफओ के कुल 13.7 लाख करोड़ रुपये के कोष में से केवल 4,600 करोड़ रुपये यानी इसका केवल 5% ही बाजारों में निवेश किया जाता है।
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