[ad_1]

पूर्वी लद्दाख में भारत से हर मोर्चे पर मात खाने वाले चीन को एक बार फिर से मिर्ची लगी है। एलएसी गतिरोध के बीच दूसरे देशों से भारतीय सेना के लिए खरीदे जाने वाले हथियारों पर पड़ोसी देश ने कहा है कि इससे कोई फायदा नहीं होने वाला। दरअसल, जब से वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर भारत और चीन के बीच आमना-सामना हुआ है, तब से केंद्र सरकार लगातार अपनी सेना को और अधिक ताकतवर बना रही है। इसके लिए अमेरिका, फ्रांस, रूस आदि देशों से बड़े स्तर पर हथियार खरीदे जा रहे हैं, ताकि किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहा जा सके। वहीं, वित्त वर्ष 2021-22 के लिए सरकार ने सैन्य बजट में भी पिछले साल के बजट की तुलना में इजाफा किया है। इन्हीं तमाम वजहों से चीन को डर लगने लगा है। 

चीनी सरकार के भोंपू माने जाने वाले ग्लोबल टाइम्स में लियू झिन ने भारतीय इकॉनमी, बजट, सैन्य आदि मसलों पर एक आर्टिकल लिखा है। इसमें उन्होंने कहा है कि कोरोना वायरस महामारी की चपेट में आई भारतीय इकॉनमी में साल 2020-21 में 7.7 फीसदी के कॉन्ट्रैक्टशन का अनुमान है। इससे सैन्य बजट में मामूली बढ़ोतरी की गई है। अतिरिक्त खर्च चीन के साथ सीमा विवाद के बीच नए सैन्य हथियार खरीदने में किया जाएगा। हालांकि, दूसरे देशों से हथियार खरीदकर भारतीय सेना को चीन के साथ सीमा विवाद निपटाने में ज्यादा लाभ नहीं मिलने वाला है। 

इसके साथ ही यदि इकॉनमी के मौजूदा हालात के बावजूद भी भारत सैन्य ताकत को बढ़ाने पर आंख बंद करके जोर देता रहता तो इकॉनमी के सुधारों पर असर पड़ेगा। आर्टिकल में ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के हवाले से आगे कहा गया, ”भारतीय सैन्य खर्च बढ़कर 3.47 ट्रिलियन (47.4 बिलियन डॉलर) हो गया, जो पिछले वित्त वर्ष में 3.43 ट्रिलियन था। यहां यह भी बताया जाना चाहिए कि इस मामले में भारत का खर्च चीन के एक चौथाई हिस्से के बराबर है। मई, 2020 में बीजिंग ने अपना वार्षिक रक्षा बजट 178.6 बिलियन डॉलर का ऐलान किया था।” आगे बताया गया कि बजट में थोड़ी सी बढ़ोतरी भारत के पिछली अपेक्षाओं का विरोधाभासी है। 

‘मौजूदा परिस्थितियों में सेना में और पैसा नहीं लगा सकता भारत’
चीनी सेना के एक्सपर्ट और कॉमेंटेटर सॉन्ग झोंगपिंग का कहना है कि कोविड-19 महामारी के कारण भारत की इकॉनमी को आश्चर्यजनक तरीके से गिरावट का सामना करना पड़ा है और इन परस्थितियों में भारत अपनी सैन्य शक्तियों को अधिक बढ़ाने में और पैसा नहीं लगा सकता है। हालांकि, माना जा रहा है कि चीनी एक्सपर्ट का यह आकलन भविष्य में गलत ही होने जा रहा है, क्योंकि कोविड के बाद भारत की इकॉनमी तेजी से बढ़ रही है और यहां तक कि आईएमएफ ने हाल ही में साल 2021-22 में भारत के लिए 11.5 फीसदी की विकास दर का अनुमान लगाया है।  वहीं, ग्लोबल टाइम्स ने यह भी कहा है कि भारत के रक्षा बजट में पिछले कुछ सालों में लगातार बढ़ोतरी देखी गई है, लेकिन इस साल वित्तीय दबाव के चलते कम बढ़ोतरी की गई। 

‘सैन्य शक्ति में इजाफा करना एक भ्रम’
वहीं, सिंगहुआ विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय रणनीति संस्थान में अनुसंधान विभाग के निदेशक कियान फेंग ने ग्लोबल टाइम्स को बताया, ”लेकिन यह मानना भारत का भ्रम है कि वह अन्य देशों से हथियार खरीदकर अपनी सैन्य क्षमता में सुधार कर लेगा।” कियान ने आगे बताया कि अनुसंधान और विकास में अपनी कम क्षमता के कारण, भारत वैश्विक स्तर पर उन्नत और उच्च तकनीक वाले हथियार खरीदने की मांग कर रहा है। चीन से सामना होने पर शायद ही इससे भारत को फायदा मिले। मालूम हो कि पिछले साल भारत और चीन के बीच कई बार आमना-सामना हो चुका है। दोनों ही देश एक के बाद एक वरिष्ठ सैन्य कमांडर स्तर की बातचीत भी कर रहे हैं, जिससे दोनों देशों के संबंधों में नरमी आ सके।

रूस-अमेरिका से हथियार खरीदना चीन को चुभा
आर्टिकल से यह भी साफ हो रहा है कि पिछले कुछ समय में भारत ने रूस, अमेरिका समेत कई देशों से जो हथियार खरीदे हैं, उससे चीन को काफी दिक्कत महसूस हो रही है। ग्लोबल टाइम्स ने एक्सपर्ट के हवाले से कहा, ”भारत ने हाल ही में अमेरिका, रूस, इजरायल और फ्रांस से हथियार खरीदे हैं, जिससे उसकी युद्धक क्षमता में सीमित वृद्धि ही होगी। लड़ाई के दौरान सेना के लिए रसद और आपूर्ति काफी अहम है। खरीदे गए हथियारों के रख-रखाव की लागत भी बहुत बड़ी होने वाली है, जिसपर पैसा व्यर्थ खर्च होगा। इस शॉर्टकट की वजह से भारत के राष्ट्रीय रक्षा में सुधार के तरीके को खतरा हो सकता है। एक्सपर्ट ने आगे कहा कि अगर भारत अभी भी लागत पर विचार किए बिना हथियार खरीदकर अपनी सेना के ‘आधुनिकीकरण’ को साकार करने पर जोर दे रहा है, तो इसका आर्थिक सुधार स्मूथ नहीं होगा।

[ad_2]

Source link

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here