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बॉलीवुड के बेहतरीन अभिनेता मनोज बाजपेयी (Manoj Bajpayee) इन दिनों वेब सीरीज ‘द फैमिली मैन 2’ (The Family man 2) को लेकर खूब सुर्खियों में हैं। एक ओर जहां सीरीज दर्शकों का दिल जीत रही है तो वहीं श्रीकांत तिवारी बने मनोज बाजपेयी भी खूब तारीफें लूट रहे हैं। ऐसे में अपने शुरुआती दिनों से लेकर ‘द फैमिली मैन 3’ (The Family man 3) के टॉपिक तक पर मनोज बाजपेयी ने हिन्दुस्तान के साथ खास बातचीत की….
आपने कब तय किया कि आपको एक्टर बनना है?
मैं बचपन से ही एक्टर बनना चाहता था। मेरे मां-बाप फिल्मों के बहुत शौकीन थे, और मुझे भी फिल्में दिखाने ले जाते थे। मैं जब- जब फिल्में देखता था, तो मुझे यही लगता था कि मुझे भी यही करना है। पढ़ाई- लिखाई में भी बहुत मन नहीं लगता था, लेकिन नाटक और कविता पाठ आदि में ज्यादा मजा आता था।
फिल्म द्रोहकाल में आप करीब 2 मिनट के लिए दिखे थे, उसके बारे में कुछ बताएं?
उस वक्त तक मैं मुंबई में नहीं था और दिल्ली में थिएटर करता था। थिएटर के अंतिम समय में मैं बैंडिट क्वीन में एक अच्छा रोल कर चुका था। जब मैं मुंबई आया तो मैं गोविंद निहलानी जी के पास गया था, क्योंकि मैंने सुना था कि वो एक फिल्म के लिए कास्टिंग कर रहे हैं। मेरे बहुत प्रिय दोस्त आशीष विद्यार्थी उस फिल्म में बड़ा किरदार कर रहे थे। मैं निहलानी जी के पास गया और मिला तो उन्होंने कहा कि मेरे पास कोई रोल है ही नहीं और जो रोल हैं वो तुम्हारे लायक नहीं हैं, क्योंकि तुमने थिएटर किया है और शेखर कपूर के साथ काम किया है। तो मैंने कहा कि आपके पास जो भी रोल है, मुझे दे दीजिए। इसके बाद बहुत हिचकिचाते हुए उन्होंने वो रोल मुझे दिया। मैं सोच रहा था कि मुझे बस सेट पर रहना था, नसीर साहब और ओम पुरी साहब को देखूंगा और गोविंद जी मुझे डायरेक्ट करेंगे, इससे अच्छी बात क्या हो सकती है। उस वक्त कोई च्वाइस नहीं था कि उस रोल के सिवा, जबकि गोविंद जी नहीं चाहते थे कि मैं वो रोल करूं।
जब द फैमिली मैन (पार्ट वन) आपको ऑफर हुई थी तो आपका पहला रिएक्शन क्या था?
जब मुझे द फैमिली मैने के दो तीन एपिसोड दिखाए गए थे, तो मुझे ये समझ आ गया था कि कॉन्टेंट बहुत अच्छा है और मुझे ये पता था कि अगर दर्शकों को श्रीकांत तिवारी पसंद आ गया तो सीरीज हिट होगी। मैं भाग्यशाली हूं कि लोगों ने श्रीकांत तिवारी के साथ खुद को रिलेट किया, लोग श्रीकांत में अपने आपको देखने लगे। इस वजह से पहले सीजन को खूब सफलता मिली। मुझे लगता है कि इसे पार करना का सपना हम नहीं देख सकते थे। लेकिन ये जो मिल रहा है ये एतिहासिक है। मैं कहूंगा कि सीरीज की दुनिया का ये सत्या, गैंग्स ऑफ वासेपुर, बाहुबली है। हमें आगे सिर्फ काम करना है और ये उम्मीद नहीं रखनी है कि ऐसी सफलता मिलती रहे। हमें सिर्फ अच्छा काम करना है।
सीरीज के कई सीन्स सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं, शूट करते वक्त इस बारे में कभी सोचा था?
मुझे विश्वास था कि ऑफिस सीन लोगों को अच्छा लगेगा। क्योंकि जो कॉर्पोरेट सेक्टर हैं, उनका एक कल्चर है, वहां डिलीवर करने की काफी डिमांड होती है। इसके साथ ही कम उम्र के लोग जो आपको ज्ञान देते हैं, इससे सब खफा होते हैं। मुझे पता था कि ये काफी हिट करने वाला है, लेकिन इतना ज्यादा रिलेट करेंगे ये नहीं सोचा था। ये कुछ नया है, हमे नहीं पता था कि ये इस तरह से रिसीव किया जाएगा। ये कुछ अलग हो रहा है, कुछ नया हो रहा है। इसके लिए तो हम भी तैयार नहीं थे।
‘द फैमिली मैन 3’ कब तक रिलीज हो पाएगी?
शायद हम सीजन 3 की शूटिंग कर चुके होते, अगर ये कोरोना न होता तो। कोविड के कारण सीजन 2 के पोस्ट प्रोडक्शन में ही काफी टाइम लग गया। इसके साथ ही राज एंड डीके दूसरे कामों में भी बिजी थे, जो उन्होंने पहले ही कमिटमेंट किए हुए थे। हम सभी की एक बार बातचीत शुरू हो, फिर इसकी लिखाई वगैरह भी आगे बढ़ेगी। लॉकडाउन और कोविड की वजह से वक्त लगेगा इसमें।
किरदारों को चुनने का पैमाना क्या है?
मेरे लिए एक चीज जरूरी होती है, कि क्या मैं इस किरदार के साथ कुछ नया कर पाऊंगा, क्या मैं इस किरदार के साथ कुछ नया करने की कोशिश कर सकता हूं? या फिर वही जो लोगों ने किया हुआ है, वही आएगा। अगर मुझे लगता है कि कुछ नया हो सकता है तो उसके साथ आगे बढ़ते हैं। फैमिली मैन के पहले के कॉन्टेट्स में मैं जाना नहीं चाहता था, मैं वो कर चुका था और कुछ नया ढूंढ रहा था। मुझे नहीं पता था कि मैं क्या ढूंढ रहा हूं, लेकिन ये पता था कि क्या नहीं ढूंढ रहा हूं। उस वक्त मुकेश छाबड़ा ने मुझे फोन किया और कहा कि राज एंड डीके मुझसे मिलना चाहते हैं। इसके बाद हम एक रेस्टोंरेट में मिले, फिर उन्होंने मुझे इसका सिनोप्सिस दिया और मैंने बीस मिनट बाद ही कह दिया कि मैं ये करूंगा। मेरे पास में एक आइडिया था कि मैं इसको परफॉर्म कैसे करूंगा, किस तरह से मैं इसको नया कर सकता हूं। मुझे सिर्फ प्रैक्टिस करनी थी, बाकी सब आपके सामने है।
अभी तक एजेंट्स को एक सुपरहीरो जैसा दिखाया जाता रहा है, लेकिन श्रीकांत तिवारी एक कॉमनमैन है, कुछ डर था दिमाग में कि क्या होगा अगर लोगों को ये सिंपल एजेंट पसंद नहीं आया तो?
यही इस सीरीज की सबसे अच्छी बात है कि इंटेलीजेंस एजेंट्स से जुड़े जितने भी मिथ हैं, ये सीरीज उन सबको ब्रेक करती है। इसके साथ ही आपको ये भी बताती है कि रियल एंजेट किस हालात में काम करता है और कैसे उसके अंदर देश सेवा का पेशन है। सच ये भी है कि अगर पूरे साल देश पर कोई हमला नहीं होता तो उसकी तारीफ नहीं होती, क्योंकि कोई जानता ही नहीं है कि उसने क्या कमाल का काम किया है। लेकिन अगर एक अटैक हो जाता है तो सब उस पर उंगली उठाते हैं, ये बहुत थैंकलेस जॉब है।
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